केवल शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते हैं. लिंग रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है है क्योंकि वो ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं. इसलिए शिव मूर्ति और लिंग दोनों रूपों में पूजे जाते हैं. यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु नाद स्वरूप है. बिंदु शक्ति है और नाद शिव. यही सबका आधार है. बिंदु एवं नाद अर्थात शक्ति और शिव का संयुक्त रूप ही तो शिवलिंग में अवस्थित है. बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि. यही दो शिवलिंग में अवस्थित है. बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि. यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है.
शिवलिंग का अर्थ है शिव का आदि-अनादी स्वरूप. शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड व निराकार परमपुरुष का प्रतीक. स्कन्दपुराण के मुताबिक आकाश स्वयं लिंग है. धरती उसका आधार है व सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है.शिव पुराण के मुताबिक शिवलिंग की पूजा करके जो भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं उन्हें प्रात: काल से लेकर दोपहर से पहले ही इनकी पूजा कर लेनी चाहिए. इसकी पूजा से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
बिंदु शक्ति है और नाद शिव. यही सबका आधार है. बिंदु एवं नाद अर्थात शक्ति और शिव का संयुक्त रूप ही तो शिवलिंग में अवस्थित है. बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि. यही दो शिवलिंग में अवस्थित है. बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि. यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है.
शिवलिंग का अर्थ है शिव का आदि-अनादी स्वरूप. शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड व निराकार परमपुरुष का प्रतीक. स्कन्दपुराण के मुताबिक आकाश स्वयं लिंग है. धरती उसका आधार है व सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है.
शिव पुराण के मुताबिक शिवलिंग की पूजा करके जो भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं उन्हें प्रात: काल से लेकर दोपहर से पहले ही इनकी पूजा कर लेनी चाहिए. इसकी पूजा से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
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